भारतीय संविधान की प्रस्तावना इसके उद्देश्यों और मूल्यों को दर्शाती है। भारत का संविधान विश्व का सबसे विस्तृत और परिपूर्ण संविधान माना जाता है। इसकी प्रस्तावना (Preamble) संविधान की आत्मा और मूलभूत ढांचे को दर्शाती है। यह संविधान के उद्देश्यों, आदर्शों और सिद्धांतों का सारांश प्रस्तुत करती है, जो यह स्पष्ट करता है कि भारत का शासन किस प्रकार संचालित होगा और इसके मूल मूल्य क्या होंगे।
संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त परिचय
संविधान की प्रस्तावना एक प्रस्तावनात्मक वक्तव्य (Introductory Statement) है, जो यह निर्धारित करती है कि संविधान किन मूलभूत सिद्धांतों और उद्देश्यों के आधार पर बनाया गया है। यह प्रस्तावना संविधान को समझने की एक कुंजी के रूप में कार्य करती है और न्यायपालिका के लिए संवैधानिक व्याख्या का एक महत्वपूर्ण आधार बनती है।
संविधान की प्रस्तावना का मूल पाठ
“हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समानता,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता
प्रदान करने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
संविधान की प्रस्तावना के महत्वपूर्ण तत्व
प्रस्तावना में निम्नलिखित मूलभूत तत्व शामिल हैं:
1️⃣ संप्रभुता (Sovereignty)
भारत एक पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी बाहरी शक्ति से स्वतंत्र है और अपने निर्णय स्वयं लेता है।
इसका कोई भी विदेशी शासन या प्रभुत्व स्वीकार्य नहीं है।
2️⃣ समाजवाद (Socialism)
भारत में समाजवादी अर्थव्यवस्था अपनाई गई है, जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित करना है।
संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना, धन का एकत्रीकरण रोकना और कमजोर वर्गों को सशक्त बनाना समाजवाद के मूल तत्व हैं।
3️⃣ पंथनिरपेक्षता (Secularism)
भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म को न तो बढ़ावा देगा और न ही किसी धर्म के खिलाफ कोई भेदभाव करेगा।
सभी धर्मों को समान सम्मान और स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।
4️⃣ लोकतंत्र (Democracy)
भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली लागू की गई है, जिसमें जनता सर्वोच्च होती है।
सरकार चुनावी प्रक्रिया द्वारा जनता के मताधिकार से चुनी जाती है और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।
5️⃣ गणराज्य (Republic)
भारत एक गणराज्य है, अर्थात राष्ट्र का प्रमुख (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं बल्कि जनता द्वारा निर्वाचित होता है।
हर नागरिक को सरकार में भागीदारी और अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है।
6️⃣ न्याय (Justice)
संविधान की प्रस्तावना तीन प्रकार के न्याय को सुनिश्चित करती है:
सामाजिक न्याय – जाति, धर्म, लिंग, भाषा, आर्थिक स्थिति आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
आर्थिक न्याय – सभी नागरिकों को आर्थिक अवसर उपलब्ध कराना और गरीबी को समाप्त करना।
राजनीतिक न्याय – सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान राजनीतिक अधिकार मिलना।
7️⃣ स्वतंत्रता (Liberty)
प्रत्येक नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त है।
यह स्वतंत्रता लोकतांत्रिक समाज के विकास और व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति के लिए अनिवार्य है।
8️⃣ समानता (Equality)
प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समान अधिकार प्राप्त हैं।
यह अवसरों की समानता सुनिश्चित करता है ताकि हर व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार विकास कर सके।
9️⃣ बंधुता (Fraternity)
संविधान व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए बंधुता की भावना को बढ़ावा देता है।
यह समाज में भाईचारे और सौहार्द की भावना को मजबूत करता है।
संविधान की प्रस्तावना का महत्व
🔹 राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
प्रस्तावना में उल्लिखित सिद्धांत भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को सुनिश्चित करते हैं।
🔹 संवैधानिक व्याख्या का आधार
भारत के उच्चतम न्यायालय ने कई मामलों में संविधान की प्रस्तावना को संविधान की व्याख्या के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत माना है।
🔹 लोकतंत्र की दिशा और उद्देश्य स्पष्ट करना
यह प्रस्तावना भारत को एक लोकतांत्रिक, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
🔹 मौलिक अधिकारों की पुष्टि
संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित सिद्धांत मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों का आधार बनते हैं।
संविधान की प्रस्तावना की विशेषताएँ
✅ यह संविधान का परिचयात्मक वक्तव्य है।
✅ यह संविधान की आत्मा को प्रतिबिंबित करती है।
✅ यह भारतीय लोकतंत्र की दिशा और उद्देश्य निर्धारित करती है।
✅ यह न्यायपालिका द्वारा संवैधानिक मामलों की व्याख्या के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है।
✅ 1976 के 42वें संविधान संशोधन द्वारा इसमें ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘राष्ट्रीय एकता’ शब्द जोड़े गए।
संविधान की प्रस्तावना पर प्रमुख अदालती निर्णय
🔹 केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।
🔹 बेरुबाड़ी संघ मामला (1960)
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग नहीं है, लेकिन संविधान की व्याख्या में सहायक है।
🔹 सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1965)
न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान की आत्मा माना।
निष्कर्ष
भारत के संविधान की प्रस्तावना देश की लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिकों के अधिकारों और राष्ट्र के लक्ष्यों को स्पष्ट करती है। यह संविधान की आत्मा के रूप में कार्य करती है और भारतीय लोकतंत्र के मूलभूत आदर्शों को प्रदर्शित करती है। प्रस्तावना में उल्लिखित सिद्धांत और मूल्य संविधान की संपूर्ण संरचना को परिभाषित करते हैं और राष्ट्र की दिशा तय करते हैं।
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